पश्चिमी शौचालय बनाम इंडियन शौचालय।

Ravi Ranjan Goswami
2 min readFeb 24, 2021

लोग एक अर्से से पूछ रहे है। कब और कहाँ सेटल होंगे। मेरा जवाब होता है मैं तो यहाँ सेटल हूँ। मैं जिस समय जहाँ हूँ वहीँ सेटल हूँ किन्तु उनका मतलब खुद का घर बनाने से होता। घर जमीन के बिना आपको आवारा भी समझा जा सकता है। कई सरकारी कार्यों में असुविधा हो सकती है। अतः मैंने सोचा रिटायरमेन्ट के बाद एक मकान खरीदा जायगा।

मकान बनवाने में लगने वाले श्रम से बचने के लिए बना बनाया मकान या फ़्लैट लेने का विचार है।

अभी ऑनलाइन खोज कर रहा हूँ।

इस दौरान सर्व प्रथम जो बातें मेरे सामने आयीं वह इस प्रकार हैं।

१ मकान और फ़्लैट सभी महंगे हैं

२ बिल्डर्स ऊँची इमारतें खड़ी करने में ज्यादा दिलचस्पी लेते हैं।

३ सभी मकान या फ़्लैट में अटैच्ड टॉयलेट हैं। कोई स्वतंत्र टॉयलेट नहीं। अतिथियों को बैडरूम से होकर ही टॉयलेट जाना होगा।

४ सभी टॉयलेट पश्चिमी शैली के टॉयलेट है।

मुझे शत प्रतिशत पश्चिमी शैली के टॉयलेट बनाये जाने पर आश्चर्य , आपत्ति , और रोष है।

जहाँ दो टॉयलेट है वहाँ एक इंडियन टॉयलेट तो बना ही सकते थे।

मैं चाहूंगा कोई विद्वान इसकी सामाजिक, सांस्कृतिक ,आर्थिक और राजनीतिक तथा पब्लिक हैल्थ के हिसाब से अध्यन कर बताएं इसके नफा नुक्सान क्या हैं। और इसमें बिल्डरस और उसके सहयोगियों का क्या और कितना वेस्टेड इंटरेस्ट है।

मुझे तो ये शत प्रतिशत पश्चिमी टॉयलेट बनाने के पीछे भारत, भारतीयों और भारतीयता के खिलाफ कोई गहरी साजिश लगती है। क्या कोई टॉयलेट के जरिये कोलोनियलिज़्म तो नहीं बढ़ा रहा है।

कुछ बिल्डर्स इनके खिलाफ खड़े हो जाएँ और इंडियन टॉयलेट को उचित प्रार्थमिकता दें तो जनता उनके साथ खड़ी होगी।

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Ravi Ranjan Goswami

An IRS officer and a poet and writer, who prefers to write poems in Hindi and other articles in Hindi and English. He is from Jhansi, and lives in Cochin India.